उपवास का उद्देश्य शारीरिक आवश्यकताओं पर संयम रखते हुए, उच्च आध्यात्मिक क्षेत्रों में वृद्धि प्राप्त करना है। शास्त्र कहते हैं कि उपवास स्वयं को परम देवत्व के अनुकूल बनाकर, तन और मन में समरसता की स्थिति बनाए रखने में मदद करता है। उपवास क्या है?/What is fasting इसे सही तरह से समझने के लिए, पूर्ण भक्तिभावना से किए गए उपवास के परिणामों द्वारा स्वयं जान सकते हैं।
हमारे जीवन में उपवास या व्रत का क्या महत्व है?/ Importance of fasting or vrat in our lives
देवनागरी में, व्रत शब्द का अर्थ- प्रण, संकल्प और भक्ति का प्रदर्शन करना है। व्रत, हमें परमात्मा के प्रति समर्पण भाव और उच्च अंतःसत्व से जोड़ने में मदद करता है, जिसमें 'व्र' का अर्थ है- इच्छाशक्ति और 'रत' का अर्थ है- स्वरूप। व्रत, हमें ब्रह्मांड के चक्रीय स्वरूप को बनाए रखते हुए मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है। अतः, चंद शब्दों में उपवास के महत्व/importance of fasting का वर्णन नहीं किया जा सकता।
उपवास के लाभ/ Benefits of fasting
विज्ञान की दृष्टि से भी उपवास के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जिनमें मोटापे पर नियंत्रण, रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि को रोकना, हृदय और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार और कैंसर की रोकथाम के उपाय सम्मिलित होते हैं। धार्मिक उपवासों का ऊर्जा संतुलन, कोलेस्ट्रॉल और ऑक्सीडेटिव तनाव पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए बीमारियों को रोकने के लिए चिकित्सक द्वारा, इसे स्वास्थ्य प्रबंधन की क्रिया के रूप में शामिल करने की भी सलाह दी जाती है।
भक्तों की बढ़ती संख्या इस बात को प्रमाणित करती है कि सोमवती अमावस्या व्रत/ Amavasya vrat पर भगवान शिव का पूजन करने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। यह व्रत, अविवाहितों को एक अच्छा जीवनसाथी तथा विवाहित भक्तों को वैवाहिक शांति और घरेलू सौहार्द प्रदान करने के साथ ही, मन में कुछ उत्कट कामना के साथ प्रार्थना करने वाले सभी भक्तों को हर तरह से सुख प्रदान करता है।
सोमवार या सोलह सोमवार के व्रत, कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से राहत देते हैं तथा आर्थिक स्थिति और प्रसन्नता को बढ़ाते हैं। बृहस्पति को शांत करने और वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से बचने के लिए, गुरुवार का व्रत किया जाता है। इसके अलावा, इसे स्वास्थ्य और आर्थिक संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए भी किया जाता है। प्रार्थना के साथ उपवास करने से, देवता तुरंत प्रसन्न होते हैं, जिससे ईश्वर की कृपा और वरदान की प्राप्ति होती है। वास्तव में, बृहस्पतिवार, गुरु या बृहस्पति ग्रह का दिन है। यह थे व्रत या उपवास रखने के कुछ लाभ/Benefits of fasting।
सोमवार व्रत का सबसे उत्तम समय/ Best time for Monday fast
सोलह सोमवार के व्रत/ Somvar Vrat श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू करके, प्रारंभ में 4 या 5 सोमवार तक व्रत रखना अच्छा माना गया है तथा उसके बाद सहज महसूस होने पर, भक्त लगातार 16 सोमवार तक उपवास कर सकते हैं। उत्तर भारत में सोमवती अमावस्या जुलाई से अगस्त की अवधि के दौरान मनाई जाती है, जबकि दक्षिण भारत में नवंबर से दिसंबर के बीच मनाई जाती है।
सोलह सोमवार व्रत की पूजन विधि/ 16 Somvar Vrat Puja Vidhi
सोमवती अमावस्या के दिन, व्रत रखने वाले भक्तों को सफेद रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। व्रत की विधि के अनुसार, सूर्योदय से पूर्व उठकर भगवान शिव का ध्यान करना होता है। इसके तुरंत बाद स्नान करके भगवान शिव और देवी पार्वती का पूजन करना चाहिए। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त पर समाप्त होता है। इस समय विशेष पूजा शुरू करनी होती है। सुबह 'शिव-लिंग' पर गंगा जल, दूध और दही से अभिषेक करके, सफेद फूलों से श्रृंगार कर मौसमी फल चढ़ाना चाहिए, फिर पूरा दिन "ॐ नमः शिवाय" आदि मंत्र का जाप करते हुए व्यतीत करने के बाद, संध्याकाल के समय सच्ची भक्ति से भगवान शिव की कथा को पढ़ा जाता है। साथ ही, दोपहर के भोजन में केवल साबूदाना खिचड़ी या फल खाने की अनुमति होती है।
शिवरात्रि के अगले दिन उद्यापन और शिव पूजा/ Shivaratri with udyapan and shiva puja के साथ व्रत समाप्त करके, नैवेद्य वितरित किया जाता है। आमतौर पर, पूजा मंदिर परिसर में की जाती है, लेकिन मंदिर की यात्रा बोझिल होने पर, पूजा घर पर भी कर सकते हैं। सोमवार की पूजन विधि में उपरोक्त सभी क्रियाएं सम्मिलित होती हैं।
क्या आप गुरुवार की पूजन विधि विस्तारपूर्वक बता सकते हैं?/ Can you explain in detail, the Thursday Puja Vidhi?
पौष माह के अतिरिक्त, किसी भी गुरुवार से उपवास शुरू कर सकते हैं। प्राथमिक रूप से, यह उपवास शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार से शुरू करके सोलह गुरुवार तक किया जाता है, फिर उसके बाद तीन वर्षों तक लगातार जारी रहता है।
गुरुवार व्रत विधि/ Thrusday fast vidhi
इस पूजन के लिए दाल, गुड़, हल्दी, केला और भगवान नारायण की एक तस्वीर की आवश्यकता होती है।सुबह जल्दी स्नान करके और पीले वस्त्र पहनकर, भगवान की तस्वीर को गंगाजल और हल्दी से अभिषेक करके, पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं तथा अक्षत (पीले रंग के चावल के दाने) अर्पित करके, घी का दीपक जलाकर श्लोकों का जाप कर व्रत की कथा पढ़ी जाती है। इस दिन भगवान को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है। पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन अपने बाल न धोएं और न ही नमक युक्त व्यंजन खाएं। व्रत कथा को सुनकर या पढ़कर व्रत का समापन किया जाता है, इसलिए गुरुवार व्रत कथा अवश्य ही करनी चाहिए तथा पीले वस्त्र दान में देने चाहिए।गुरुवार की पूजन विधि/ Thursday puja Vidhiमें उपरोक्त सभी क्रियाओं का पालन करने पर, भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
Comments